Business Success Story: दिल्ली निवासी हिमांशु लोहिया की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए एक मिसाल है जो परिस्थितियों से हारकर अपने सपनों को त्याग देते हैं। हिमांशु एक मेधावी छात्र थे और उनका सपना था कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करके एक अच्छी नौकरी पाएंगे। लेकिन जिंदगी के हालात कुछ और ही लेकर आए। पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक परेशानियों ने उन्हें एक ऐसे मोड़ पर ला दिया जहां उन्हें अपने करियर के बारे में दोबारा सोचना पड़ा। यही वह समय था जब उन्होंने साबित कर दिया कि हालात इंसान को तोड़ सकते हैं लेकिन हौसला बुलंद रखने वाले को कभी हरा नहीं सकते।
मां की बीमारी ने बदल दी दिशा
2004 का साल हिमांशु के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया जब उनकी मां को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का पता चला। इलाज की बढ़ती लागत ने पूरे परिवार की आर्थिक स्थिति को हिला दिया। घर में पैसों की कमी के कारण हिमांशु को अपनी डिप्लोमा की पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी। यह निर्णय उनके लिए बेहद कष्टकारी था क्योंकि वे हमेशा से पढ़ाई में तेज थे और अपने भविष्य को लेकर बड़े सपने देखते थे। लेकिन परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के इस चुनौती को स्वीकार किया।
छोटी शुरुआत से बड़े सपने
मजबूरी में हिमांशु ने काम की तलाश शुरू की और उन्हें जो भी काम मिला उन्होंने उसे पूरी ईमानदारी से किया। शुरुआत में वे सड़कों पर खड़े होकर सिम कार्ड बेचने का काम करते थे। यह काम न केवल शारीरिक रूप से कठिन था बल्कि कई बार लोगों के ताने भी सुनने पड़ते थे। इसके बाद उन्होंने डिक्शनरी बेचने का काम शुरू किया जिसके लिए वे रोजाना साइकिल से 30 किलोमीटर का सफर तय करते थे। कमाई बहुत कम थी लेकिन उनका हौसला बुलंद रहा और वे लगातार बेहतर अवसरों की तलाश में रहे।
विज्ञापन जगत से मिला अनुभव
2010 में हिमांशु को एक विज्ञापन कंपनी में काम मिला जहां उन्होंने आठ साल तक सेवा की। इस दौरान उन्होंने विज्ञापन निर्माण, ग्राहक संपर्क और मार्केटिंग की बारीकियों को सीखा। कंपनी में काम करते हुए उन्हें व्यावसायिक दुनिया की समझ मिली और वे समझ गए कि एक सफल कारोबार कैसे चलाया जाता है। यह अनुभव उनके भविष्य के उद्यमी बनने की यात्रा में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ।
कोविड काल में साहसिक निर्णय
2020 में कोरोना महामारी के दौरान जब कंपनी ने अचानक उनकी सैलरी आधी कर दी तो हिमांशु ने एक साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने नौकरी छोड़कर अपना व्यापार शुरू करने का फैसला किया। गुड़गांव के मानेसर में 10 लाख रुपये के शुरुआती निवेश के साथ उन्होंने अपनी कंपनी अर्डेंट एडवर्ल्ड की स्थापना की। मात्र तीन महीने में उनकी कंपनी ने 70 लाख रुपये का कारोबार हासिल किया। आज उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 6 करोड़ रुपये है और 40 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं।
अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य जानकारी और प्रेरणा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें व्यक्त विचार किसी प्रकार की वित्तीय या व्यावसायिक सलाह नहीं हैं। कोई भी व्यापारिक निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।